गुरुग्राम, सतीश भारद्वाज : गुरुग्राम के एक आरटीआई कार्यकर्ता द्वारा ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ ,न्यूज़ 18,गुरुग्राम न्यूज़ नेटवर्क, आईएनएस तथा अन्य उनके संबंधित पत्रकारों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 499 और 500 के तहत दायर आपराधिक रिवीजन पर सूनवाई एडीजे की अदालत में बीते 3 अक्टूबर को नहीं हो सकी । जिसमें रिविजनिस्ट द्वारा आरोप लगाया है कि कुछ समाचार पत्रों व युटुब चैनल ने उनके खिलाफ झूठी और निराधार खबर प्रकाशित कर उनकी प्रतिष्ठा को गंभीर क्षति पहुँचाई है। जिससे समाज में उनकी छवि काफी धूमिल हुई है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार 10 मई 2021 को हिन्दुस्तान टाइम्स के गुरुग्राम संस्करण और ऑनलाइन पोर्टल पर आरटीआई कार्यकर्ता व उसके बेटे पर ₹15 करोड़ फ्राड नामक शीर्षक से एक समाचार प्रकाशित किया गया था। जिससे केस करने वाले को एतराज है,उनका कहना था कि यह खबर “असत्य, दुर्भावनापूर्ण और बिना किसी तथ्यात्मक आधार” के प्रकाशित की गई थी। उनका कहना था कि यह रिपोर्ट न केवल गलत तथ्यों पर आधारित छापी गई थी, बल्कि उसे बिना किसी सत्यापन या अधिकारिक स्रोत के प्रकाशित किया गया, जिससे उनकी और उनके परिवार की सामाजिक प्रतिष्ठा पर गंभीर आघात पहुँचा था।
न्यायालय परिसर क्षेत्र में इस मामले पर चर्चा थी कि आरटीआई कार्यकर्ता हरिंदर धींगड़ा और उनके पुत्रों के खिलाफ समाचारपत्रों में यह कहा गया था कि बाप बेटे को ₹15 करोड़ की बैंक धोखाधड़ी के आरोप में गिरफ्तार किया गया। जबकि वास्तविकता यह है कि संबंधित बैंक ऋण विवाद एक अलग मामला था, इसमें कोई भी आपराधिक धोखाधड़ी नहीं हुई। जिसमें बताया गया है कि कथित ऋण मामले में भारतीय ओवरसीज बैंक ने 2005 में दिल्ली स्थित ऋण वसूली न्यायाधिकरण (DRT) में याचिका दायर की थी, जिसमें स्वयं बैंक ने यह स्वीकार किया कि उन्होंने उनके परिवार ने कोई संपत्ति गिरवी नहीं रखी थी। इसी प्रकार, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स से लिए गए दूसरे ऋण का भी अधिकांश भुगतान समय पर किया गया था, और शेष राशि के संबंध में मामला अदालत में विचाराधीन था।उक्त विवाद एक पारिवारिक सिविल प्रकृति का था, जिसका किसी प्रकार की आपराधिक साजिश या जनधन हानि से कोई संबंध नहीं था। इसके बावजूद, समाचार पत्रों व युटयुब चैनलों ने इसे “बैंक धोखाधड़ी” के रूप में प्रस्तुत किया और “सनसनीखेज शीर्षक” के साथ प्रकाशित किया, जो कि एक लिखित मानहानि के दायरे में आता है। जिसपर आरटीआई एक्टिविस्ट ने आईपीसी की धारा 499 का हवाला देते हुए अदालत का रुख किया है। जिसमें कहा गया है कि किसी व्यक्ति के संबंध में झूठा या असत्य आरोप प्रकाशित करना, जिससे उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचे या पहुँचने की संभावना हो, दंडनीय अपराध है। साथ ही, शिकायत में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय सुबरमण्यम स्वामी बनाम भारत संघ (AIR 2016 SC 2728) का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि “व्यक्ति की प्रतिष्ठा संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उसके जीवन और स्वतंत्रता का अभिन्न हिस्सा है।”रिवीजन में न्यायालय से गुहार लगाई है कि मेरी छवि को धुमिल करने वाले सम्बंधित सभी पत्रकारों के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही प्रारंभ करने के आदेश देकर मेरे को न्याय दिलाया जाएं। जिसकी अगली सुनवाई तारीख 6 नवंबर 2025 एडीजे सोरभ गुप्ता की अदालत में होगी।

अदालत में दायर आरटीआई एक्टिविस्ट की शिकायत के अनुसार बताया गया है कि उन्होंने जीवन भर सरकारी विभागों में फैले भ्रष्टाचार और जनहित से जुड़े मुद्दों को काफी उजागर किया है। परंतु इस तरह की झूठी खबरों ने उनके परिवार के जीवन को काफी प्रभावित किया है। यह सच्चाई की आवाज़ को दबाने का प्रयास उनके खिलाफ एक षड्यंत्र रच कर किया गया है, जिससे उनको काफी मानसिक व आर्थिक नुकसान भी हुआ है।
वहीं इस मामले पर यह भी चर्चाएं है कि इससे पहले उन्होंने काफी समाचारपत्रों के पत्रकारों तथा युटबर को कानूनी नोटिस भी भेजा था। जिसपर कुछ प्रतिष्ठित समाचार पत्रों ने तो अपनी ख़बर पर खेद भी प्रकट किया था। लेकिन कुछ राजनैतिक दबंग नेताओं के चहेतों ने इसको गंभीरता से नहीं लिया था। जिसपर उन्होंने न्याय के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है।
वहीं न्यायालय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इसमें द न्यूज 18 इंडिया के प्रबल प्रताप, संतोष मेनन,धमबीर, गुरुग्राम न्यूज़ नेटवर्क के सुनील यादव,मनु मेहता,पवन कुमार सेठी,द टाइम्स ऑफ इंडिया के बागेश झा, आईएनएस के संदीप वामजी,द ट्रिब्यून ट्रस्ट के राजेश रामचन्द्र,नामजी हंस, सुमेधा सिंह,बिनीता तथा द हिन्दुस्तान मिडिया के सुकुमार रंगनाथन,नेहा पुषकरण तथा सोभना भरतीया सहित करीब बीस को पार्टी बनाया हुआ है। गुरुग्राम अदालत में इससे पहले भी आसाराम मामले में एक नाबालिग पीड़ित लड़की की तोर मोड कर चैनलों पर चलाई गई फिल्म के मामले में भी दीपक चौरसिया जैसे बड़े पत्रकारों पर भी मामला दर्ज हुआ था।